आँखों का स्वस्थ रहना और स्पष्ट दिखाई देना जितना जरुरी है उतना ही जरुरी है उनका सही आकर और मस्तिष्क से तालमेल होना। हमारी दोनों आँखों के मध्य एक उचित तालमेल होता है जिस की वजह से दोनों आँखें एक ही टाइम में एक ही बिंदु पर फोकस करती है और साफ़ प्रत्तिबिम्ब बनाती है।
यदि किसी कारणवश जन्म से आँखों के आकर में कुछ विकृति या तिरछापन होता है तो मस्तिष्क दोनों आंखों से अलग-अलग दृश्य संकेत प्राप्त करता है और कमजोर आंखों से मिलने वाले संकेत को नज़रअंदाज़ कर देता है। इस वजह से डबल विज़न की समस्या हो जाती है जिसको भैंगापन कहते है।
खासकर ये समस्या बच्चो में होती है लेकिन बड़े लोगो में भी भैंगापन किसी दुर्घटनावश, आँखों में चोट लगने या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण हो सकता है। समस्या गंभीर होने पर उपचार करवाना जरुरी है वरना देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
जब दोनों आंखें ठीक तरह से अलाइन या एक सीध में नहीं होती हैं तो इसको भैंगापन या आँखों का तिरछापन कहा जाता है। साइंटिफिक लैंग्वेज में इसको स्क्विंट या स्ट्राबिस्मस या क्रॉस्ड आईस कहते हैं।
भैंगापन की समस्या तब आती है जब एक आंख ज्यादा ही अंदर की ओर या बाहर की ओर या नीचे की ओर या उपर की ओर हो जाती है। आँखों के एक सीध में न होने के कारण वो एक साथ एक बिंदु पर केंद्रित नहीं हो पाती हैं और दोनों आंखें अलग-अलग दिशाओं में देखती हैं। भैंगापन की समस्या से जूझ रहे लोगो को अन्य व्यक्तियों से भी बातचीत करने झिझक लगती है।
भैंगापन की समस्या को ठीक किया जा सकता है, अधिकतर मामलों में आंखों का भेंगापन पूरी तरह ठीक हो जाता है।
आंख की स्थिति और आकर के आधार पर भैंगेपन की समस्या निम्न प्रकार की होती है:
हाइपरट्रोपिया जब आंख उपर की ओर मुड़ जाती है।
हाइपोट्रोपिया जब आंख नीचे की ओर मुड़ जाती है।
एसोट्रोपिया जब आंख अंदर की ओर चली जाती है।
एक्सोट्रोपिया जब आंख बाहर की ओर चली जाती है।
सामान्यत: भैंगेपन की समस्या जन्मजात होती है, लेकिन आँखों की चोट, बीमारियां या दुर्घटनाएं भी इसका कारण बन सकती हैं:
भैंगेपन का सबसे सामान्य लक्षण है, आंखों का तिरछा होना या उनका एकसाथ एक बिंदु पर फोकस नहीं हो पाना। इसके अलावा निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
भैंगेपन का पता लगाने के लिए ये विधि उपयोग में लायी जाती है:
जन्म या बीमारी की शुरूआत में ही अगर डिटेक्ट हो जाए तो भैंगेपन का उपचार अधिक प्रभावी रहता है, समस्या बढ़ने पर इसका पूरी तरह उपचार संभव नहीं है। छोटे बच्चो में छह साल की उम्र तक उपचार कराना काफी प्रभावी रहता है अन्यथा इसका उपचार किसी कुशल नेत्र चिकित्स्क से कभी भी करवाया जा सकता है। जब किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या, चोट या बीमारी के कारण भैंगेपन की समस्या होती है तो उसका उपचार जरूरी हो जाता है और अगर समय रहते सर्जरी करा ली जाए तो परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं।